अपना पहला प्यार भूल पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है..यही संदेश देती है किशमिश

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कोलकाता,(नि.स.)l एक कहावत है.. हम एक बार जीतें हैं, एक बार मरते हैं, शादी भी एक बार होती है, और प्यार एक बार ही होता है. शायद यही मंत्र लेकर चले थे अशीम और पुबाली. जी हां, अगर आपको यकीन नहीं होता है तो बेझिझक देख आयेें राहुल मुखर्जी निर्देशित फिल्म किशमिश. 29 अप्रैल 2022 से यह सभी सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो रही है. दूसरी तरफ फ़िल्म की शीर्षक ‘किशमिश’ को लेकर भी एक कहावत है..किशमिश बाहर से दिखने में जितनी ही क्यों न खराब लगे, अंदर से हमेशा मीठा होता है. किसी समय अशीम(कमलेश्वर मुखर्जी) किराने की दुकान चलाया करता था, जहां पुबाली(अंजना बसु) अक्सर किशमिश लेने आती थी. देखते ही देखते दोनों में प्यार हो जाता है. बात शादी तक जा पहुंचती है. लेकिन पुबाली के घरवाले ज़बरदस्ती उसकी शादी कही और कर देते हैं. आगे अशीम की भी शादी हो जाती है. और उस शादी से उसकी एक बेटी रोहिणी(रुक्मिणी मैत्रा) है. दूसरी तरफ अब पुबाली भी अब एक बेटे टिनटिन(देव) की माँ है. लेकिन सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि रोहिणी और टिनटिन भी इत्तफाक से कॉलेज में मिलते हैं और दोनों में प्यार हो जाता है. लेकिन जब उनके घरवालों को इस बात का पता चलता है, तो खासतौर पर पुबाली और अशीम दोनों इस रिश्ते को ठुकरा देते हैं. वजह…. दोनों ही अपने पहले प्यार को भूल नहीं पाते हैं. इस वजह से भी उनकी निजी जिंदगी में भी उतार चढ़ाव देखने को मिलती है. अब आगे क्या होता है, यह देखना दिलचस्प होगा. रोहिणी और टिनटिन शादी कर पाते हैं या नहीं? यह तो वक़्त ही बताएगा. यानी आपको प्रेक्षागृह में जाकर इस फ़िल्म को देखनी पड़ेगी.

इतना वादा कर सकते हैं कि पूरी फिल्म आपको प्यार करना सिखा देगी. फ़िल्म का हर एक गाना आपको भावुक कर देगा यह भी तय है. क्योंकि म्यूज़िक निलायन चटर्जी ने दिया है. फ़िल्म का बैकग्राउंड म्यूज़िक भी असाधारण है, यह कोई बोलने की बात नहीं है. टिनटिन के पिता की भूमिका में खराज मुखर्जी ने कमाल का अभिनय किया है. पूरी फ़िल्म में वे छाये रहें. वहीं टिनटिन की मां की भूमिका में अंजना ने भी काफी उम्दा काम किया है. रोहिणी की मां की भूमिका में जून मालिया सामान्य लगी. फ़िल्म में उनके किरदार के लिए कुछ कर पाना मुमकिन नहीं था. रोहिणी के पिता के किरदार में कमलेश्वर का चयन शानदार था. उनके अभिन्य में एक जादू है. अब रही देव की बात, इस फ़िल्म में उनकी बेजोड़ मेहनत दिखाई पड़ती है. कभी कॉलेज स्टूडेंट, राजनीतिक व्यक्तित्व और आखिरकार एक बाप की भूमिका में वे दमदार लगें. जब सब के बारे में इतनी अच्छी बातें सामने चलकर आती हैं, तो इसका मतलब सब कुछ सही साबित हुआ है. लेकिन यहां कुछ गड़बड़ी भी है. रुक्मिणी के अभिनय में जिस एक्स फैक्टर की तलाश थी, वह देखने को मिली नहीं. टिनटिन के दादी के किरदार में लिली चक्रवर्ती काफी स्वीट लगी. फ़िल्म में महिलाओं के पीरियड्स को लेकर एक मुद्दे का खंडन किया गया है जो एक महत्वपूर्ण विषय है. आखिरकार जिस बात को कहने में मैं इतना इंतज़ार कर रहा था, और वह है स्क्रिप्ट. उसमें काफी खामिया नज़र आती है. 2 घन्टे 29 मिनट तक यह प्रत्येक किरदारों को जोड़ने की होड़ में कई महत्वपूर्ण विषय से दूर हट जाती है. यानी इस विषय को लम्बा खींचा गया है.दर्शक एक ही मुद्दे को देखकर या सुनकर बोर होने लगते है. लेकिन अंत में एक बात ज़रूर कहना चाहूंगा, देव….आपकी कोशिशें एक दिन ज़रूर रंग लाएगी.

दर्शकों के लिए इतना कहना चाहूंगा, आप लोग इस फ़िल्म को देखने के लिए एक बार सिनेमाघरों का रुख कर सकते हैं. Come…. fall in love !

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