राजनीति और प्यार की अनोखी दास्तान है तखोन कुहासा छिलो

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मुझे हर रोज सौमित्र जी के कमरे में हाज़िरी लगानी पड़ती थी: शाश्वत

कोलकाता, (नि.स)l सैयद मुश्तफ़ा सिराज ने एक नॉवेल लिखा था, जिसमें बंगाल की राजनीति और नेताओं का स्वार्थ सामने चलकर आया था. गांव और बेकार युवकों की जर्जर हालात भी उसी में समाया हुआ था. निर्देशक शैबाल मित्रा ने उपरोक्त विषय को अपनी बांग्ला फ़िल्म तखोन कुहासा छिलो में रखा है. इस फ़िल्म में शाश्वत चटर्जी, बासवदत्ता चटर्जी, सौमित्र चटर्जी और अंकिता मजूमदार हैं. वहीं अन्य भूमिका में बरुन चक्रवर्ती, देबरंजन नाग, निमाई घोष, सोहाग सेन और अरुण गुहा ठाकुरता हैं. इस फ़िल्म के निर्माता प्रदीप चूड़ीवाल हैं.

फ़िल्म की कहानी-गन फ्रंट पार्टी एक हारी हुई पार्टी है. दूसरी तरफ बांग्ला बचाओ दल सचिन नामक गुंडे को लेकर पूरे राज्य को अपने कब्जे में कर रखा है. पुटू (शाश्वत) और प्रवीण मास्टर (सौमित्र) मौजूदा राजनीति को देखकर अपने को समेट चुके हैं. यह देखकर बांग्ला बचाओ दल पार्टी प्रचार के दैरान अपनी दहशत फैलाने में व्यस्त हो जाती है. इसी बीच सचिन विपक्षी दल के एक कर्मी की हत्या कर देता है. तभी अपनी चेतना को जागृत कर पुटू सचिन की हत्या कर देता है. आगे चलकर गणो फ्रंट पार्टी पुटू को सब मामलों से छुड़ा लेता है. लेकिन अंत में पुटू खुद लोगों के लिए एक आतंक बन गया होता है.शैबाल मित्रा ने इसमें पुटू के साथ महुआ (बासवदत्ता) के साथ लव एलिमेंट्स रखा है, जो वाकई हृदयस्पर्शी है.

कैसी लगी फ़िल्म: निर्देशक ने जिस तरह से नेताओं एवं उनके द्वारा पालतू गुंडों की छवि को पर्दे पर उतारा है, उसे दाद देनी होगी. इसके अलावा गांव की दर्दनाक छवि देखकर आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे. ऊपर से फ़िल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक तेजेंद्र मजूमदार ने दिया है, जो आपको आश्चर्यचकित कर देगा. सौमित्र और शाश्वत का अभिनय दर्शकों को हॉल में खींचने के लिए काफी है. बासवदत्ता के लिए कुछ कर दिखाने का मौका कम था. दूसरी तरफ अभिनेता बरुन दत्ता का किरदार आकृष्ट करेगा. निर्देशक ने हिटलर का चित्र, युद्ध के कुछ दृश्य के साथ बेला चाओ की सुर और आमी जे तोर आलोर छेले गीत को भी फ़िल्म के समापन के वक्त जोड़कर कुछ इंटेलेक्चुअल चीज़ों को प्रकाश में लाया है.

हाल ही में उपरोक्त फ़िल्म का स्पेशल स्क्रीनिंग हुआ.

स्क्रीनिंग के दौरान किसने क्या कहा-मौके पर अंकिता ने कहा, शाश्वत के साथ यह मेरी पहली फ़िल्म है. उनके साथ काम करने का अनुभव लाजवाब था. सेट पर उनकी गतिविधियों को फॉलो किया करती थी. काफी कुछ सीखने को मिला है.

दूसरी तरफ बरुन चक्रवर्ती ने कहा, यह फ़िल्म काफी समसामयिक है. इसे देखने के बाद लोग अपने आप को इससे जोड़ पाएंगे. उनको महसूस होगा कि वे कितना लाचार हैं.

शूटिंग की वजह से पहली बार शांतिनिकेतन जाना हुआ. नज़ारा वाकई दिलचस्प था. जी हां, स्क्रीनिंग के दौरान अभिनेत्री बासवदत्ता ने कुछ ऐसा ही कहा. उन्होंने आगे कहा, शाश्वत चटर्जी एवं सौमित्र चटर्जी के साथ पहली बार काम करने की वजह से उत्साहित भी हूं.

शाश्वत ने कहा, शूटिंग के बाद मुझे हर रोज सौमित्र जी के कमरे में हाज़िरी लगानी पड़ती थी. उस दैरान वे अपनी जीवनी लिख रहे थे. और वे मुझे उसे सुनाया भी करते थे.

शाश्वत ने बांग्ला सिनेमा को लेकर चिंता भी ज़ाहिर की.

वहीं प्रदीप चूड़ीवाल ने कहा, मैं हमेशा कुछ अलग करने की चाहत रखता हूं. यही वजह है कि मैंने इस फ़िल्म को प्रॉड्यूस किया.

शैबाल मित्रा का कहना है, आजकल पॉलिटिकल नेताओं की सिफारिश के बिना कोई भी काम बनने से रहा. कुछ ऐसी घटनाओं से रूबरू करवाएगी तखोन कुहासा छिलो.

इस अवसर पर देवदूत घोष, अरिजीत दत्ता, पायल मुखर्जी, पिया विश्वास सहित कई गणमान्य लोग मौजूद थे.

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